कानून का उद्देश्य होता है — न्याय देना, न कि किसी निर्दोष को सज़ा देना। IPC की धारा 498A और अब BNS की धारा 85 महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई थीं। लेकिन आज यह देखने को मिल रहा है कि कुछ मामलों में इन धाराओं का दुरुपयोग भी हो रहा है।
धारा 498A (IPC) – मूल उद्देश्य
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A कहती है:
“पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता किया जाना एक अपराध है।”
यह धारा गैर-जमानती, गंभीर, और गिरफ्तारी योग्य है।
धारा 85 (BNS) – नया स्वरूप
2023 में लागू भारतीय न्याय संहिता (BNS) में, धारा 498A की जगह अब धारा 85 ले चुकी है। अर्थ वही है — घरेलू क्रूरता को अपराध मानना, लेकिन अब इसमें भाषा और प्रक्रिया को थोड़ा बदला गया है।
दुरुपयोग कैसे होता है?
- झगड़े या तलाक की स्थिति में झूठे आरोप लगाए जाते हैं
- पति के साथ-साथ पूरे परिवार को नामजद कर दिया जाता है
- समझौता पाने के लिए केस को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है
- बिना जांच के गिरफ्तारी हो जाती है
वास्तविक केस उदाहरण (बिना नाम के)
एक व्यक्ति ने बताया कि शादी के महज 2 महीने बाद, पत्नी ने 498A का केस दर्ज करा दिया जिसमें बुज़ुर्ग माँ-बाप, बहन और भाई को भी फँसा दिया गया। बाद में मामला झूठा पाया गया लेकिन परिवार को मानसिक और सामाजिक यातना झेलनी पड़ी।
कानूनी उपाय (Legal Remedies for Victims)
- जमानत याचिका: अग्रिम ज़मानत (Anticipatory Bail) पहले से ली जा सकती है
- FIR को रद्द करवाना: झूठे केस में हाईकोर्ट से FIR रद्द कराई जा सकती है (CrPC 482)
- IPC 182/211: गलत FIR पर कार्रवाई के लिए
- काउंटर केस: मानसिक उत्पीड़न पर IPC 500 (defamation) या 120B (conspiracy)
मुख्य अंतर – सारणी में
| विषय | धारा 498A (IPC) | धारा 85 (BNS) |
|---|---|---|
| प्रभावी वर्ष | 1983 | 2023 से लागू |
| मूल उद्देश्य | दहेज उत्पीड़न रोकना | घरेलू क्रूरता को दंडनीय बनाना |
| सज़ा | 3 साल तक की सज़ा | वही सज़ा, नए शब्दों में |
निष्कर्ष
धारा 498A और BNS की धारा 85 महिलाओं की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं — लेकिन इनका संतुलित और जिम्मेदार उपयोग होना चाहिए।
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